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भारतीय समाजशास्त्र के जनक: जी.एस. घुर्ये की विरासत और योगदान

भारतीय समाजशास्त्र के जनक2

भारतीय समाजशास्त्र के जनक: एक व्यापक अवलोकन

भारतीय समाजशास्त्र के जनक का परिचय

भारत में समाजशास्त्र एक अलग अनुशासन के रूप में विकसित हुआ है, जो सामाजिक संरचनाओं, परंपराओं और सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करता है। “भारतीय समाजशास्त्र के जनक” की उपाधि अक्सर गोविंद सदाशिव घुर्ये को दी जाती है , जो एक अग्रणी समाजशास्त्री थे, जिनके व्यापक कार्य ने भारत में समाजशास्त्र के अकादमिक अध्ययन की नींव रखी। जाति, संस्कृति और सामाजिक संरचनाओं पर उनके शोध ने भारतीय सामाजिक विज्ञानों पर एक स्थायी प्रभाव डाला है।

गोविंद सदाशिव घुर्ये : एक अग्रणी समाजशास्त्री

गोविंद सदाशिव घुर्ये , एक प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री, भारत में समाजशास्त्र के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं। 1893 में जन्मे, उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र को एक औपचारिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। घुर्ये ने तीन दशकों से अधिक समय तक बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई विश्वविद्यालय) में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख के रूप में कार्य किया, जिसने भारत में समाजशास्त्रीय शोध को महत्वपूर्ण रूप से आकार दिया।

भारतीय समाजशास्त्र में जीएस घुर्ये का योगदान

घुर्ये का योगदान विशाल और प्रभावशाली है:

  • जाति और सामाजिक स्तरीकरण: उन्होंने जाति व्यवस्था का व्यापक अध्ययन किया, इसकी उत्पत्ति, संरचना और भारतीय समाज पर इसके प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया। उनकी कृति “भारत में जाति और नस्ल” (1932) भारतीय समाजशास्त्रीय साहित्य में एक मील का पत्थर बनी हुई है।
  • भारतीय जनजातियाँ और संस्कृति: उन्होंने भारतीय जनजातियों पर गहन शोध किया, उनकी परंपराओं, आर्थिक स्थितियों और आधुनिकीकरण के कारण संघर्ष पर प्रकाश डाला।
  • शहरीकरण और सामाजिक परिवर्तन: घुर्ये ने विश्लेषण किया कि शहरीकरण ने भारतीय समाज को किस प्रकार प्रभावित किया, तथा इस बात पर बल दिया कि किस प्रकार पारंपरिक मूल्यों ने आधुनिक प्रभावों के साथ अनुकूलन किया।
  • हिंदू धर्म और सामाजिक संस्थाएं: उनके कार्य में हिंदू परंपराओं, धार्मिक प्रथाओं और सामाजिक मानदंडों को आकार देने में उनकी भूमिका का पता लगाया गया।

घुर्ये से पहले और बाद में भारत में समाजशास्त्र

घुर्ये से पहले , भारत में समाजशास्त्र में संस्थागत ढांचे का अभाव था। इस विषय को अक्सर नृविज्ञान या दर्शन का हिस्सा माना जाता था। घुर्ये के व्यवस्थित दृष्टिकोण के साथ, समाजशास्त्र एक मान्यता प्राप्त शैक्षणिक अनुशासन बन गया।
उनके योगदान के बाद, एमएन श्रीनिवास और एआर देसाई जैसे कई भारतीय विद्वानों ने समाजशास्त्र के दायरे का विस्तार किया, भारत में जाति गतिशीलता, ग्रामीण समाजशास्त्र और आर्थिक संरचनाओं की खोज की।

भारतीय समाजशास्त्र के जनक

भारतीय समाजशास्त्र के जनक

यह समाचार महत्वपूर्ण क्यों है?

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घुर्ये के योगदान को समझना महत्वपूर्ण है।

भारतीय नीतियों पर घुर्ये का प्रभाव

उनके काम ने जाति-आधारित आरक्षण, आदिवासी विकास और सामाजिक न्याय से संबंधित नीतियों को प्रभावित किया है। उनके सिद्धांत भारत की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे उनके अध्ययन नीति निर्माताओं और समाज सुधारकों के लिए प्रासंगिक बन जाते हैं।

समकालीन अध्ययन में भारतीय समाजशास्त्र का विकास

भारत में समाजशास्त्र एक गतिशील क्षेत्र बना हुआ है, जहाँ विद्वान आधुनिक सामाजिक मुद्दों जैसे लैंगिक असमानता, शहरी गरीबी और जातिगत भेदभाव को संबोधित करने के लिए घुर्ये के काम पर काम कर रहे हैं। उनके सिद्धांत आज के संदर्भ में भारत के सामाजिक ताने-बाने को समझाने में मदद करते हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में समाजशास्त्र का विकास

भारत में समाजशास्त्र का प्रारंभिक विकास

एक विषय के रूप में समाजशास्त्र काफी हद तक ऑगस्टे कॉम्टे, कार्ल मार्क्स और एमिल दुर्खीम जैसे पश्चिमी विचारकों से प्रभावित था। हालाँकि, भारत में, समाजशास्त्र शुरू में नृविज्ञान के साथ जुड़ा हुआ था।

भारतीय समाजशास्त्र पर औपनिवेशिक शासन का प्रभाव

ब्रिटिश शासन के दौरान, समाजशास्त्रीय अध्ययन मुख्य रूप से ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा किए जाते थे, जो जाति, धर्म और स्थानीय शासन पर ध्यान केंद्रित करते थे। हालाँकि, उनके काम में भारतीय परिप्रेक्ष्य का अभाव था, जिसे बाद में घुर्ये ने पेश किया।

स्वतंत्रता के बाद भारत में समाजशास्त्र का विकास

स्वतंत्रता के बाद, समाजशास्त्र नीति-निर्माण और शासन में एक महत्वपूर्ण अनुशासन बन गया, जिसने जाति-आधारित आरक्षण, सकारात्मक कार्रवाई और ग्रामीण विकास कार्यक्रमों से संबंधित निर्णयों को प्रभावित किया। एमएन श्रीनिवास और योगेंद्र सिंह जैसे विद्वानों ने इस अनुशासन को और आगे बढ़ाया।

“भारतीय समाजशास्त्र के जनक” से मुख्य बातें

क्र. सं.कुंजी ले जाएं
1गोविंद सदाशिव घुर्ये को भारतीय समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है।
2उनकी पुस्तक “कास्ट एंड रेस इन इंडिया” (1932) भारतीय समाजशास्त्र में एक अग्रणी कार्य है।
3उन्होंने जाति अध्ययन, शहरी समाजशास्त्र और भारतीय परंपराओं में व्यापक योगदान दिया।
4घुर्ये के कार्य ने जनजातीय कल्याण और जाति-आधारित आरक्षण से संबंधित नीतियों को प्रभावित किया।
5घुर्ये के योगदान के कारण भारत में समाजशास्त्र एक स्वतंत्र शैक्षणिक विषय के रूप में विकसित हुआ ।

भारतीय समाजशास्त्र के जनक

इस समाचार से छात्रों के लिए महत्वपूर्ण FAQs

1. भारतीय समाजशास्त्र के जनक के रूप में किसे जाना जाता है?

गोविंद सदाशिव घुर्ये को भारत में जाति, संस्कृति और सामाजिक संरचनाओं के अध्ययन में उनके व्यापक योगदान के लिए भारतीय समाजशास्त्र का जनक माना जाता है।

2. समाजशास्त्र में घुर्ये का सबसे प्रसिद्ध कार्य क्या है?

उनकी पुस्तक “कास्ट एंड रेस इन इंडिया” (1932) उनकी सबसे प्रभावशाली कृतियों में से एक है, जिसमें भारत में जाति व्यवस्था और उसके ऐतिहासिक महत्व का विश्लेषण किया गया है।

3. घुरये ने भारत में समाजशास्त्र के विकास में किस प्रकार योगदान दिया?

घुर्ये ने भारतीय विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में संस्थागत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और समाजशास्त्रीय अध्ययनों में इंडोलॉजिकल दृष्टिकोण पेश किया।

घुर्ये के शोध के प्रमुख क्षेत्र क्या हैं ?

उनका शोध जाति, भारतीय जनजातियों, शहरीकरण, हिंदू सामाजिक संस्थाओं और सांस्कृतिक परंपराओं पर केंद्रित था।

5. घुर्ये का कार्य आधुनिक भारतीय समाज के लिए किस प्रकार प्रासंगिक है?

जाति, सामाजिक पदानुक्रम पर उनके अध्ययन,

कुछ महत्वपूर्ण करेंट अफेयर्स लिंक्स

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