छत्तीसगढ़ ने देश के तीसरे सबसे बड़े टाइगर रिजर्व को मंजूरी दी
नए बाघ अभयारण्य का परिचय
छत्तीसगढ़ राज्य ने हाल ही में देश के तीसरे सबसे बड़े बाघ अभयारण्य की स्थापना को मंजूरी दी है, जो भारत में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नया अभयारण्य गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर में स्थित होगा। पिंगला वन्यजीव अभयारण्य। इस अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 2,000 वर्ग किलोमीटर होने की उम्मीद है , जो इसे बाघों और अन्य वन्यजीव प्रजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण निवास स्थान बनाता है।
वन्यजीव संरक्षण पर प्रभाव
यह नया बाघ अभयारण्य भारत के संरक्षित क्षेत्रों के मौजूदा नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त है। इस अभयारण्य की स्थापना का उद्देश्य बाघों के संरक्षण को मजबूत करना है, जिन्हें लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह तेंदुए, जंगली सूअर और विभिन्न पक्षी प्रजातियों जैसी अन्य प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय के रूप में भी काम करेगा। इस अभयारण्य की स्वीकृति भारत की अपनी समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण और लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ
बाघ अभयारण्य के निर्माण से महत्वपूर्ण आर्थिक और पारिस्थितिक लाभ होने की उम्मीद है। इस क्षेत्र में इकोटूरिज्म को बढ़ावा मिलने की संभावना है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे और राजस्व उत्पन्न होगा। इसके अतिरिक्त, यह रिजर्व क्षेत्र में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने, जल स्रोतों की रक्षा करने और विभिन्न प्रजातियों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। रिजर्व की स्वीकृति विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की आवश्यकता की बढ़ती मान्यता का प्रमाण है।
संरक्षण के लिए सहयोगात्मक प्रयास
बाघ अभयारण्य की स्वीकृति राज्य सरकार, संरक्षणवादियों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों का परिणाम है। यह वन्यजीव संरक्षण में सामूहिक कार्रवाई के महत्व को उजागर करता है। संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करेगी कि वे अपनी प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में हितधारक हैं, जिससे क्षेत्र में सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा।

यह समाचार क्यों महत्वपूर्ण है
वन्यजीव संरक्षण के लिए महत्व
छत्तीसगढ़ के नए बाघ अभयारण्य को मंजूरी मिलना भारत के वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए चल रहे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण घटना है। बाघ न केवल प्रतिष्ठित प्रजाति हैं, बल्कि शीर्ष शिकारी भी हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अधिक संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करके, भारत यह सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है कि आने वाली पीढ़ियाँ जंगल में बाघों को देखना जारी रखेंगी।
इकोटूरिज्म को बढ़ावा
बाघ अभयारण्य की स्थापना से इस क्षेत्र में पारिस्थितिकी पर्यटन को काफी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। इससे न केवल आर्थिक लाभ होगा बल्कि वन्यजीव संरक्षण के बारे में जागरूकता भी बढ़ेगी। देश-विदेश से पर्यटकों के इस अभयारण्य में आने की संभावना है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत बनेगा और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
भारत की वैश्विक छवि को सुदृढ़ बनाना
भारत में दुनिया की बाघ आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है, और नए बाघ अभयारण्यों के निर्माण जैसी पहल वन्यजीव संरक्षण में अग्रणी के रूप में इसकी वैश्विक छवि को मजबूत करती है। यह कदम अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण लक्ष्यों के अनुरूप है और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जो वैश्विक जैव विविधता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक संदर्भ
भारत में बाघ संरक्षण
1970 के दशक से ही भारत में बाघ संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत के साथ। इस परियोजना की शुरुआत निवास स्थान के नुकसान, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण बाघों की आबादी में भारी गिरावट से निपटने के लिए की गई थी। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने देश भर में कई बाघ अभयारण्य स्थापित किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बाघों की आबादी में धीरे-धीरे वृद्धि हुई है। छत्तीसगढ़ में नए बाघ अभयारण्य का जुड़ना इन प्रयासों की निरंतरता है, जो देश की अपने राष्ट्रीय पशु के संरक्षण के लिए लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य को लंबे समय से उनकी समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। ये क्षेत्र कई लुप्तप्राय प्रजातियों का घर हैं और इन्हें वन्यजीव संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण आवास के रूप में पहचाना गया है। इन क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य में बदलने का निर्णय इन प्रजातियों की सुरक्षा बढ़ाने और क्षेत्र की पारिस्थितिक अखंडता को संरक्षित करने के लिए एक रणनीतिक कदम है।
छत्तीसगढ़ के नए टाइगर रिजर्व से मुख्य बातें
सीरीयल नम्बर। | कुंजी ले जाएं |
1 | छत्तीसगढ़ ने देश के तीसरे सबसे बड़े बाघ अभयारण्य को मंजूरी दे दी है। |
2 | गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर में 2,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला होगा पिंगला वन्यजीव अभयारण्य. |
3 | इस रिजर्व से वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, विशेषकर बाघ जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण को। |
4 | इस क्षेत्र में इको-पर्यटन के फलने-फूलने की उम्मीद है, जिससे स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ मिलेगा। |
5 | यह रिजर्व विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। |
इस समाचार से छात्रों के लिए महत्वपूर्ण FAQs
छत्तीसगढ़ में नए बाघ अभयारण्य का क्या महत्व है?
- छत्तीसगढ़ में नया बाघ अभयारण्य महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश का तीसरा सबसे बड़ा अभयारण्य है, जिसका क्षेत्रफल 2,000 वर्ग किलोमीटर है। यह वन्यजीव संरक्षण, विशेष रूप से बाघों जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
नया बाघ अभयारण्य कहां स्थित होगा?
- घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर में स्थित होगा छत्तीसगढ़ में पिंगला वन्यजीव अभयारण्य।
नया बाघ रिजर्व स्थानीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव डालेगा?
- इस बाघ अभयारण्य से इकोटूरिज्म को बढ़ावा मिलने तथा रोजगार सृजन और राजस्व सृजन के माध्यम से स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है।
भारत में बाघ संरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?
- भारत में बाघ संरक्षण की शुरुआत 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के शुभारंभ के साथ हुई थी, जिसका उद्देश्य बाघों को अवैध शिकार और आवास के नुकसान से बचाना था। तब से, देश भर में कई बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए हैं।
भारत के लिए बाघ संरक्षण क्यों महत्वपूर्ण है?
- भारत के जंगलों में पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए बाघों का संरक्षण महत्वपूर्ण है, क्योंकि बाघ सर्वोच्च शिकारी हैं। उनकी सुरक्षा से उन क्षेत्रों की जैव विविधता को भी संरक्षित करने में मदद मिलती है, जहाँ वे रहते हैं।
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