झारखंड स्थापना दिवस 2024: कब और क्यों मनाया जाता है
झारखंड स्थापना दिवस का परिचय
झारखंड स्थापना दिवस हर साल 15 नवंबर को मनाया जाता है, जो 2000 में झारखंड राज्य के गठन का प्रतीक है। यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राज्य की पहचान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को याद करता है, इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एक अलग राज्य के लिए अथक प्रयास को दर्शाता है। बिहार के दक्षिणी हिस्से से अलग होकर झारखंड इस दिन भारत का 28वां राज्य बना।
झारखंड का गठन
झारखंड को राज्य का दर्जा मिलने से पहले यह क्षेत्र बिहार का हिस्सा था। अलग राज्य की मांग इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी और मूल निवासियों की आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा से उत्पन्न हुई थी। झारखंड की स्थापना आदिवासी नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा चलाए गए लंबे समय से चले आ रहे आंदोलन का परिणाम थी, जो उनके भूमि अधिकारों और उनकी सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा की वकालत करते थे।
झारखंड के गठन से पहले कई विरोध प्रदर्शन, रैलियाँ और स्थानीय आदिवासी समुदायों से व्यापक समर्थन मिला था, जिनका बिहार राज्य में काफी हद तक प्रतिनिधित्व नहीं था। बिहार सरकार द्वारा क्षेत्र के स्वदेशी लोगों की ज़रूरतों को पूरा करने में विफल रहने के बाद आंदोलन ने गति पकड़ी। झारखंड का आधिकारिक तौर पर निर्माण बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 द्वारा किया गया था और यह 15 नवंबर, 2000 को अस्तित्व में आया।
उत्सव और सांस्कृतिक महत्व
झारखंड स्थापना दिवस सिर्फ़ एक राजनीतिक स्मरणोत्सव नहीं है, बल्कि यह राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी है। इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शन शामिल हैं, जो झारखंड के विभिन्न आदिवासी समुदायों की परंपराओं को दर्शाते हैं। सरकारी अधिकारी, राजनेता और नागरिक राज्य की उपलब्धियों का जश्न मनाने और इसके भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा करने के लिए एकत्रित होते हैं।
इस उत्सव का एक मुख्य पहलू राज्य के विकास में विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से आदिवासी आबादी के योगदान को मान्यता देना है। यह इस क्षेत्र की सामाजिक-राजनीतिक यात्रा की याद दिलाता है, जो एक हाशिए के क्षेत्र से अद्वितीय सांस्कृतिक और प्राकृतिक संसाधनों के साथ एक संपन्न राज्य में बदल गया है।
यह समाचार महत्वपूर्ण क्यों है
झारखंड स्थापना दिवस का महत्व
झारखंड स्थापना दिवस का विशेष महत्व है, खासकर भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के संदर्भ में। यह न केवल एक नए राज्य के निर्माण का प्रतीक है, बल्कि स्वदेशी समुदायों के संघर्षों की मान्यता का भी प्रतीक है। सरकारी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए, राज्य गठन के ऐतिहासिक और सामाजिक-राजनीतिक पहलुओं को समझना महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्य पुनर्गठन और इसके प्रभावों से संबंधित प्रश्न अक्सर यूपीएससी, पीएससी और अन्य प्रतियोगी सरकारी परीक्षाओं में आते हैं।
शैक्षिक और सांस्कृतिक प्रभाव
यह दिन झारखंड की सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी है। इतिहास और समसामयिक मामलों के छात्रों के लिए झारखंड में विविध जातीय समूहों, भाषाओं और सांस्कृतिक प्रथाओं के बारे में जानना आवश्यक है। यह भारत के बहुसांस्कृतिक ताने-बाने की व्यापक समझ प्रदान करता है, जो यूपीएससी, राज्य पीएससी और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ सांस्कृतिक विविधता और राज्य-विशिष्ट मुद्दों से संबंधित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
इसके अलावा, झारखंड का स्थापना दिवस क्षेत्रीय स्वायत्तता के महत्व और राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने में समुदाय-संचालित आंदोलनों की शक्ति की याद दिलाता है। ऐसे ऐतिहासिक मील के पत्थरों को स्वीकार करके, छात्र भारतीय लोकतंत्र के व्यापक संदर्भ में शासन संरचना और राज्य आंदोलनों की प्रासंगिकता के बारे में अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं।
ऐतिहासिक संदर्भ: झारखंड के गठन की पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता-पूर्व संघर्ष और जनजातीय आंदोलन
झारखंड राज्य बनने से पहले यह बिहार के बड़े क्षेत्र का हिस्सा था। अलग राज्य के लिए संघर्ष का पता औपनिवेशिक काल से लगाया जा सकता है जब इस क्षेत्र में आदिवासी समुदायों पर अत्याचार किया गया था और उनके भूमि अधिकारों को कमज़ोर किया गया था। सिद्धू और कान्हू जैसे नेता, जिन्होंने 19वीं सदी में उलगुलान (विद्रोह) का नेतृत्व किया था, ब्रिटिश शासन और स्थानीय लोगों के शोषण के खिलाफ़ शुरुआती आवाज़ थे। ये आंदोलन क्षेत्र में आदिवासी आबादी की विशिष्ट पहचान की ओर ध्यान आकर्षित करने वाले पहले आंदोलनों में से थे।
स्वतंत्रता के बाद का संघर्ष
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी आदिवासी समुदायों के लिए अलग राज्य की मांग जारी रही। बिहार के राजनीतिक और आर्थिक संसाधन राज्य के दूसरे हिस्सों में केंद्रित होने के कारण इस क्षेत्र के लोग उपेक्षित महसूस करते थे। 1990 के दशक में आंदोलन ने गति पकड़ी, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता शिबू सोरेन जैसे नेताओं ने झारखंड के गठन की वकालत की।
यह मांग आर्थिक न्याय, बेहतर प्रतिनिधित्व और सांस्कृतिक संरक्षण की आवश्यकता पर आधारित थी। आखिरकार, कई वर्षों के विरोध और बातचीत के बाद, भारत सरकार ने स्वायत्तता के लिए आदिवासी लोगों के लंबे समय से चल रहे संघर्ष को मान्यता देते हुए 15 नवंबर, 2000 को झारखंड बनाने का फैसला किया।
“झारखंड स्थापना दिवस 2024” से मुख्य बातें
सीरीयल नम्बर। | कुंजी ले जाएं |
1 | झारखंड स्थापना दिवस 2000 में राज्य के निर्माण की याद में हर साल 15 नवंबर को मनाया जाता है। |
2 | झारखंड को स्थानीय लोगों की लंबे समय से चली आ रही अलग राज्य की मांग के कारण बिहार से अलग कर दिया गया था। |
3 | झारखंड का गठन आदिवासी समुदायों के स्वायत्तता के संघर्ष को मान्यता देने का प्रतीक है। |
4 | स्थापना दिवस के दौरान झारखंड की सांस्कृतिक विविधता का जश्न लोक संगीत और नृत्य के प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है। |
5 | झारखंड का निर्माण क्षेत्रीय स्वायत्तता और समुदाय-संचालित राजनीतिक आंदोलनों के महत्व को उजागर करता है। |
इस समाचार से छात्रों के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न
1. झारखंड स्थापना दिवस क्या है?
झारखंड स्थापना दिवस हर साल 15 नवंबर को मनाया जाता है, जो भारत के 28वें राज्य के रूप में झारखंड के निर्माण की याद में मनाया जाता है। यह वह दिन है जब 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन किया गया था।
2. झारखंड स्थापना दिवस क्यों मनाया जाता है?
यह दिवस क्षेत्र के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के दीर्घकालिक संघर्ष को मान्यता देने के लिए मनाया जाता है, जिन्होंने अपनी सांस्कृतिक पहचान, भूमि अधिकारों और बेहतर प्रतिनिधित्व की रक्षा के लिए एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी थी।
3. झारखंड राज्य का गठन कब हुआ?
बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 के प्रभावी होने के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड का आधिकारिक रूप से गठन हुआ, जिससे यह बिहार से अलग राज्य बन गया।
4. झारखंड स्थापना दिवस पर मुख्य समारोह क्या हैं?
इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिनमें पारंपरिक आदिवासी संगीत और नृत्य, सरकारी भाषण तथा राज्य की प्रगति और भविष्य के विकास पर चर्चा शामिल होती है।
5. झारखंड के गठन में किसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई?
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के संस्थापक शिबू सोरेन जैसे नेताओं ने राज्य के निर्माण की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आदिवासी नेता और कार्यकर्ता इस आंदोलन में अग्रणी भूमिका में थे।